हज़रत मोहम्मद (محمد صلی اللہ علیہ و آلہ و سلم) और मांसाहार का सच
इस्लाम धर्म के अनुयायी आज मांसाहार को अपने जीवन का हिस्सा मान बैठे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नबी हज़रत मोहम्मद साहब और उनके लगभग 1,80,000 शिष्यों ने कभी मांस नहीं खाया था?
तो सवाल यह है – अगर खुद पैगंबर और उनके साथी शाकाहारी रहे, तो आज का मुसलमान क्यों मांस खा रहा है?
कबीर साहेब की वाणी – मांसाहार सबसे बड़ा पाप
बंदी छोड़ कबीर साहेब ने अपने अमृत वचनों में मांस खाने को खुला पाप बताया है।
“कबीर, जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय।
निगम पुनि ऐसे पाप तें, भिस्त गया नहिं कोय।।1।।”
वे स्पष्ट कहते हैं कि मांसाहार करने वाला चाहे कितना भी दान करे, चाहे तीर्थ पर जाकर मरे – नरक से नहीं बच सकता।
- “कबीर, तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दै दान।
काशी करौंत ले मरै, तौ भी नरक निदान।।2।। - “कबीर, दिनको रोजा रहत हैं, रात हनत हैं गाय।
यह खून वह वंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।5।। - “कबीर, मुसलमान मारैं करदसो, हिंदू मारैं तरवार।
कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं यमके द्वार।।8।।
कबीर साहेब दोनों को चेतावनी देते हैं – हिंदू हों या मुसलमान, जो भी जीव हत्या करेगा, उसका मार्ग नरक की ओर ही जाएगा।
मांसाहारियों का भविष्य
कबीर साहेब ने मांसाहारियों की स्थिति स्पष्ट कर दी –
- मांस खाने वाला प्रत्यक्ष राक्षस के समान है।
- मांस-मछली और शराब का सेवन करने वाले नरक में जाएंगे।
- जीभ के स्वाद के लिए जीवों की हत्या करने वाला जन्म-मरण के चक्र में फँसा रहेगा।
“कबीर, मांस मछलिया खात हैं, सुरापान से हेत।
ते नर नरकै जाहिंगे, माता पिता समेत।।11।।
हिंसा का पाप और अपवाद
कबीर साहेब ने एक महत्वपूर्ण बात भी बताई – यदि कोई जीव अनजाने में मर जाता है तो उसका पाप नहीं लगता।
पाप तब लगता है जब कोई इच्छा करके हत्या करता है।
“इच्छा कर मारै नहीं, बिन इच्छा मर जाए।
कहैं कबीर तास का, पाप नहीं लगाए।।
असली इस्लाम – करुणा और दया
अगर नबी मोहम्मद साहब और उनके अनुयायी मांसाहारी नहीं थे, तो स्पष्ट है कि असली इस्लाम का आधार भी अहिंसा और करुणा ही था।
आज का मुसलमान यदि मांसाहार करता है तो वह असली नबी की राह से भटक गया है।
कबीर साहेब का संदेश:
- जीव दया ही सच्ची इबादत है।
- मांसाहार छोड़ो और एक परमात्मा की शरण लो।
- दया ही वह दरवाज़ा है जिससे जन्नत और मुक्ति का मार्ग खुलता है।
