गायत्री मंत्र: स्वरूप, लाभ और रहस्य
यह लेख गायत्री मंत्र के वास्तविक स्वरूप, उसके जाप से मिलने वाले लाभ और उसकी उत्पत्ति से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास करता है। यह जगतगुरु रामपाल जी महाराज द्वारा दी गई परिभाषा पर आधारित है।
गायत्री मंत्र की उत्पत्ति और भ्रांति
एक श्रद्धालु ने प्रश्न किया कि क्या प्रतिदिन गायत्री मंत्र (ओम् भूर्भुवः स्वः…) के 108 जाप करना मोक्षदायक है?
उत्तर में कहा गया है कि अज्ञानी लोगों ने गायत्री मंत्र के नाम से इस श्लोक का जाप करने को मोक्ष का मार्ग बताकर भोले-भाले श्रद्धालुओं का जीवन व्यर्थ कर दिया है। यह एक लोकवेद (दंतकथा) है कि यह मंत्र चारों वेदों का निष्कर्ष है।
- वास्तविकता: यह मंत्र यजुर्वेद के अध्याय 36, मंत्र संख्या 3 है।
- विचार: क्या किसी भी ग्रंथ के केवल एक श्लोक का बार-बार जाप करने से मोक्ष संभव है? इस लेख के अनुसार, यह असंभव है।
लेख में ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के रचयिता महर्षि दयानंद की अज्ञानता को भी उजागर किया गया है। दयानंद ने इसी मंत्र का अनुवाद करते समय कहा है कि “भूः भुर्व स्वः” तैत्तिरीय आरण्यक के वचन हैं, लेकिन मंत्र के शेष भाग के बारे में वे मौन रहे। इससे यह सिद्ध होता है कि उन्हें वेद ज्ञान नहीं था।
मोक्ष का वास्तविक मार्ग
लेख में बताया गया है कि ग्रंथों में केवल परमात्मा की महिमा ही नहीं, बल्कि उसे प्राप्त करने की विधि भी दी गई है।
- गीता का प्रमाण:गीता अध्याय 17, श्लोक 23 में कहा गया है कि पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का मंत्र ॐ तत् सत् है। इसे तीन विधियों से स्मरण करके ही मोक्ष प्राप्त होता है।
- ॐ: ब्रह्म (क्षर पुरुष) का जाप है।
- तत्: (सांकेतिक) परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का जाप है।
- सत्: (सांकेतिक) पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष/सतपुरुष) का जाप है।
- जाप की विधि: इन तीनों मंत्रों (ॐ-तत्-सत्) के जाप की विधि भी तीन प्रकार से है, और इसी से पूर्ण मोक्ष संभव है।
यजुर्वेद अध्याय 36, मंत्र 3 का सही अनुवाद

लेख में संत रामपाल जी महाराज द्वारा किए गए यजुर्वेद अध्याय 36, मंत्र 3 के सही अनुवाद को प्रस्तुत किया गया है:
- अनुवाद का भावार्थ: वेद ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है कि सतलोक में स्वयं प्रकट होने वाला पूर्ण परमात्मा है, वही सर्वसुखदायक और सृष्टि का उत्पन्न करने वाला है। उस परमेश्वर की उपासना शास्त्रानुसार करें, जो हमें सत्य भक्ति करने की प्रेरणा दे।
यह अनुवाद यह भी प्रमाणित करता है कि वह परमात्मा ‘कविर्मनीषी स्वयंभूः परिभूः’ है, जिसका अर्थ है ‘कबीर परमात्मा’ जो स्वयं प्रकट होते हैं और जिनका शरीर पाँच तत्वों का नहीं, बल्कि तेजोमय है।
अन्य पंथों के ज्ञान पर सवाल
लेख में राधास्वामी पंथ और धन-धन सतगुरु-सच्चा सौदा जैसे पंथों के ज्ञान पर भी सवाल उठाए गए हैं।
- शिवदयाल जी: राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी ने अपनी पुस्तकों में सतनाम को ही सारनाम, सतलोक और सतपुरुष कहा है।
- सावन सिंह जी: उन्होंने भी इसी ज्ञान का समर्थन किया है।
- सतनाम सिंह जी: उन्होंने अपनी पुस्तक ‘सच्चखंड की सड़क’ में लिखा है कि सतलोक महाप्रकाशवान है, जिसे सतनाम, सारनाम, सारशब्द भी कहते हैं।
लेख में कहा गया है कि इन पंथों के संतों को कोई ज्ञान नहीं था, और उनकी लिखी हुई कहानियाँ और क्रियाएं गलत हैं। हमें नानक साहेब जी और कबीर परमेश्वर की अमृतवाणी को आधार मानकर सत्य को स्वीकार करना चाहिए।
साधना का सही तरीका
लेख में साधना के सही तरीके को एक दृष्टांत से समझाया गया है:
- बिजली का उदाहरण: बिजली के गुणों को बार-बार रटने से उसका लाभ नहीं मिल सकता। लाभ प्राप्त करने के लिए उसका कनेक्शन लेना पड़ता है। इसी तरह, ग्रंथों में परमात्मा की महिमा का ज्ञान तो है, लेकिन उसे प्राप्त करने की विधि पूर्ण संत से ही लेनी पड़ती है।
- औषधि का उदाहरण: केवल यह कहने से कि “औषधि खा ले, स्वस्थ हो जाएगा,” कोई स्वस्थ नहीं हो सकता। स्वस्थ होने के लिए औषधि खानी पड़ती है। इसी तरह, पूर्ण संत से पूर्ण नाम जाप की विधि प्राप्त करके ही मोक्ष संभव है।
लेख में गीता अध्याय 16, श्लोक 23-24 का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करने वाले साधकों को न तो सुख मिलता है, न सिद्धि और न ही मोक्ष।
लेख का निष्कर्ष यह है कि यजुर्वेद अध्याय 36, मंत्र 3 का जाप केवल परमात्मा के गुणों से परिचित होना है, न कि मोक्ष का मार्ग। मोक्ष के लिए तत्वदर्शी संत से नाम उपदेश लेना आवश्यक है
