
सती अनुसूईया – जिन्होने त्रिदेवों को बना दिया था बालक
सती अनुसूईया का परिचय
सती अनुसूईया श्री अत्रि ऋषि की पत्नी थीं। वे अपने पतिव्रता धर्म के कारण जगत में सुप्रसिद्ध थीं। उनकी तपस्या और निष्ठा का प्रभाव इतना गहरा था कि देवियाँ तक उनसे ईर्ष्या करने लगीं।
ईर्ष्या का कारण
एक दिन देव ऋषि नारद जी श्री विष्णु लोक पहुँचे। वहाँ श्री लक्ष्मी जी अकेली थीं। वार्तालाप के दौरान नारद जी ने अनुसूईया जी की पतिव्रता धर्म और सौंदर्य की बहुत महिमा गाई। यह सुनकर लक्ष्मी जी को ईर्ष्या हुई और वे अनुसूईया का पतिव्रता धर्म खंडित करवाने की योजना सोचने लगीं।
इसी प्रकार जब नारद जी शिवलोक और ब्रह्मलोक पहुँचे, तो उन्होंने पार्वती जी और सावित्री जी के समक्ष भी अनुसूईया की महिमा सुनाई। दोनों देवियाँ भी ईर्ष्या से भर उठीं।
फिर तीनों देवियाँ (सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती) ने योजना बनाई कि वे अपने-अपने पति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) को भेजकर अनुसूईया का पतिव्रता धर्म खंडित कराएँगी।
त्रिदेवों की परीक्षा
तीनों देवियाँ अपने पतियों से ज़िद करने लगीं। ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने बहुत समझाया कि यह कार्य पाप है, परंतु देवियों के हठ के कारण वे विवश हो गए।
उन्होंने साधु का वेश धारण किया और अत्रि ऋषि के आश्रम पहुँचे। उस समय अनुसूईया अकेली थीं। उन्होंने तीनों अतिथियों को आदरपूर्वक भोजन के लिए आमंत्रित किया।
तब तीनों साधुओं ने शर्त रखी –
“हम भोजन तभी करेंगे जब तुम निःवस्त्र होकर हमें भोजन कराओ।”
अनुसूईया की प्रार्थना और चमत्कार
अनुसूईया अतिथि सेवा और शाप के भय में थीं। उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना की –
“हे प्रभु! इन्हें शिशु बना दो ताकि मेरा पतिव्रता धर्म भी सुरक्षित रहे और अतिथि सेवा भी पूरी हो जाए।”
परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छः-छः महीने के शिशु बन गए। अनुसूईया ने उन्हें निःवस्त्र होकर दूध पिलाया और पालने में सुला दिया।
देवियों का आत्मसमर्पण
जब तीनों देवता वापिस न लौटे तो सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती चिंतित होकर अत्रि आश्रम पहुँचीं। वहाँ उन्होंने अपने पतियों को पालने में शिशु रूप में देखा। पहचान न पाने पर वे अनुसूईया से क्षमा मांगने लगीं।
उन्होंने स्वीकार किया कि –
“आप सचमुच पतिव्रता स्त्री हैं। हमारी ईर्ष्या ने हमें यह गलती करने पर मजबूर किया।”
अनुसूईया ने परमेश्वर से प्रार्थना की और तीनों देवता पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए।
वरदान और दत्तात्रेय अवतार
तीनों देवताओं ने अनुसूईया से वर मांगने को कहा। अनुसूईया ने निवेदन किया कि –
“आप तीनों हमारे घर पुत्र रूप में जन्म लें। हम निःसंतान हैं।”
तब तीनों देवताओं ने उनकी बात स्वीकार की और अपनी पत्नियों के साथ अपने लोक लौट गए।
कालांतर में –
- भगवान विष्णु दत्तात्रेय रूप में,
- ब्रह्मा जी चन्द्रमा रूप में,
- शिव जी दुर्वासा रूप में
अनुसूईया के गर्भ से उत्पन्न हुए।
इसी कारण दक्षिण भारत में ‘दत्त संप्रदाय’ विशेष प्रसिद्ध है और कई मंदिर श्री दत्तात्रेय जी को समर्पित हैं।
