
श्री अमरनाथ धाम की स्थापना कैसे हुई?
पार्वती जी को उपदेश
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शंकर जी (तमोगुण) ने माता पार्वती जी को एकांत स्थान पर उपदेश दिया था।
उस उपदेश से पार्वती जी को इतना लाभ मिला कि जब तक शंकर जी की मृत्यु नहीं होगी, तब तक उमा जी की भी मृत्यु नहीं होगी।
- सात बार ब्रह्मा जी (रजोगुण) का अंत होगा।
- उसके बाद विष्णु जी (सतोगुण) का अंत होगा।
- फिर सात बार विष्णु के अंत के बाद शिव जी (तमोगुण) की मृत्यु होगी।
- उसी समय माता पार्वती की भी मृत्यु होगी।
इस प्रकार पार्वती जी को पूर्ण मोक्ष तो नहीं मिला, लेकिन उपदेश मंत्र लेने से उन्हें दीर्घजीविता का वरदान प्राप्त हुआ।
यादगार स्थल का निर्माण
श्रद्धालुओं ने इस घटना की स्मृति बनाए रखने के लिए उस स्थान को सुरक्षित कर लिया।
धीरे-धीरे वहाँ लोग दर्शन और पूजा के लिए जाने लगे और वही स्थान आज अमरनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
संत रामपाल जी महाराज का उदाहरण
जैसे आज कोई संत (उदाहरण: संत रामपाल जी महाराज) सत्संग स्थल पर प्रवचन देते हैं,
वहाँ भक्तों के लिए खीर-हलवा बनाया जाता है।
सत्संग समाप्त होने के बाद टैंट और व्यवस्था हट जाती है, केवल चूल्हे-भट्ठियाँ बची रह जाती हैं।
बाद में यदि कोई वहाँ जाए, तो न तो उसे खीर मिलेगी, न सत्संग का ज्ञान, न ही उपदेश।
वास्तविक लाभ तो वहीं मिलता है जहाँ संत वर्तमान में सत्संग कर रहे हों।
ठीक इसी तरह अमरनाथ या अन्य तीर्थ स्थान पर जाना केवल उस पुरानी भट्ठी को देखने जैसा है।
वास्तविक कल्याण तभी संभव है जब जीव सच्चे संत से नाम उपदेश प्राप्त करे।
गीता का प्रमाण
पवित्र गीता अध्याय 16 मंत्र 23-24 में स्पष्ट है:
- जो शास्त्र-विधि को त्यागकर मनमानी साधना करता है, उसे न सुख मिलता है, न सिद्धि, न मुक्ति।
- इसलिए शास्त्रानुसार ही भक्ति करनी चाहिए।
अमरनाथ यात्रा की वास्तविकता
इतिहास गवाह है कि अमरनाथ यात्रा के दौरान कई बार बर्फानी तूफान आए,
जिनमें हजारों श्रद्धालुओं की मृत्यु हो चुकी है।
यदि वास्तव में अमरनाथ जी के दर्शन से कल्याण होता,
तो क्या भगवान शिव उन श्रद्धालुओं की रक्षा नहीं करते?
इससे स्पष्ट है कि शास्त्र-विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता।
निष्कर्ष
श्री अमरनाथ धाम की स्थापना पार्वती जी को दिए गए उपदेश की स्मृति में हुई थी।
लेकिन आज वहाँ जाकर पूजा करना केवल यादगार स्थल देखने जैसा है।
सच्चा लाभ और मोक्ष केवल शास्त्रसम्मत भक्ति से ही संभव है,
जो एक तत्वदर्शी संत ही प्रदान कर सकता है।
