
संत रामपाल जी महाराज: एक संक्षिप्त परिचय
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को हरियाणा के सोनीपत जिले के धनाना गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में एक जूनियर इंजीनियर के रूप में 18 साल तक काम किया। सन् 1988 में, उन्होंने परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा ली और उनके बताए भक्ति मार्ग पर चलकर परमात्मा का साक्षात्कार किया।
आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ
17 फरवरी 1988, फाल्गुन अमावस्या की रात को, संत रामपाल जी को नाम दीक्षा मिली, उस समय उनकी आयु 37 वर्ष थी। संत परंपरा में इस दिन को किसी भी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है। इस घटना को लेकर, अनुयायियों का मानना है कि यह नास्त्रोदमस की उस भविष्यवाणी से मेल खाती है, जिसमें कहा गया था कि एक महान आध्यात्मिक नेता का आध्यात्मिक जन्म अमावस्या की रात को होगा।
सन् 1993 में, उनके गुरु स्वामी रामदेवानंद जी ने उन्हें सत्संग करने की आज्ञा दी और सन् 1994 में नामदान देने का अधिकार प्रदान किया। अपने आध्यात्मिक मार्ग के प्रति समर्पण के चलते, उन्होंने 16 मई 2000 को अपनी जूनियर इंजीनियर की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
जन-साधारण में उत्थान और विरोध
सन् 1994 से 1998 तक, संत रामपाल जी ने गाँव-गाँव और नगर-नगर में जाकर सत्य ज्ञान का प्रचार किया, जिससे उनके अनुयायियों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। इसी दौरान, उनके ज्ञान के कारण कुछ अन्य धार्मिक गुरुओं का विरोध भी बढ़ने लगा। सन् 1999 में, उन्होंने हरियाणा के रोहतक जिले के करौंथा गाँव में सतलोक आश्रम की स्थापना की। आश्रम के शुरू होते ही, दूर-दराज से लोग उनके सत्संग सुनने आने लगे और उनके अनुयायी बनने लगे।
संत रामपाल जी द्वारा दिया गया ज्ञान, जो पवित्र शास्त्रों पर आधारित था, अन्य गुरुओं के ज्ञान को चुनौती देने लगा। अनुयायियों ने अपने गुरुओं से प्रश्न करना शुरू कर दिया, क्योंकि उनका ज्ञान वेदों के विपरीत था। उदाहरण के लिए, यजुर्वेद के अध्याय 8, मंत्र 13 के अनुसार, परमात्मा अपने भक्त के सभी पापों को क्षमा कर देता है, जबकि कुछ धार्मिक पुस्तकें इसके विपरीत शिक्षा देती थीं। यजुर्वेद के अध्याय 5, मंत्र 1 में भी परमात्मा को सशरीर बताया गया है, जो इस बात का प्रमाण है कि परमात्मा जब पृथ्वी पर आते हैं तो उनका शरीर होता है।
इस तरह के तर्कों से घबराकर और अपने अज्ञान के उजागर होने के डर से, कुछ अज्ञानी संतों ने 12 जुलाई 2006 को संत रामपाल जी और उनके आश्रम पर हमला करवाया। इस घटना के बाद, सरकार ने आश्रम को अपने अधिकार में ले लिया और संत रामपाल जी को झूठे मुकदमों में जेल भेज दिया। इसी घटना के कारण सन् 2006 में वे देश भर में प्रसिद्ध हो गए।
भविष्यवाणियाँ और उनका संबंध
संत रामपाल जी के अनुयायी उन्हें कई महान संतों और भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों से जोड़ते हैं।
- नास्त्रोदमस: नास्त्रोदमस ने भविष्यवाणी की थी कि एक विश्व नेता (शायरन) 50 और 60 वर्ष की आयु के बीच प्रसिद्ध होगा, जो सन् 2006 के आसपास होगा। संत रामपाल जी की आयु उस समय 55 वर्ष थी, जो इस भविष्यवाणी से मेल खाती है। नास्त्रोदमस ने यह भी लिखा है कि वह संत सभी धर्मों के शास्त्रों के ज्ञान से परिचित होगा और तीन शब्दों का गुप्त मंत्र देगा, जो लोगों को मोक्ष दिलाएगा।
- संत गरीबदास जी: संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में कहा था कि “सतगुरु दिल्ली मण्डल आयसी,” यानी सच्चा गुरु दिल्ली मंडल में आएगा। चूंकि सोनीपत पहले दिल्ली के अधीन आता था, उनके अनुयायी इसे संत रामपाल जी के जन्मस्थान से जोड़कर देखते हैं।
- कबीर साहेब: कबीर साहेब ने कहा था कि उनका ज्ञान इतना प्रबल होगा कि वह अन्य सभी ज्ञान को उसी तरह ध्वस्त कर देगा, जैसे तोप का गोला मैदान को साफ कर देता है।
संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान और लक्ष्य
संत रामपाल जी महाराज का मुख्य उद्देश्य समाज को पवित्र शास्त्रों पर आधारित सच्चा भक्ति मार्ग दिखाना है। उनका मानना है कि अधिकांश धार्मिक गुरु शास्त्र-विरोधी पूजा करवाकर लोगों को गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘गहरी नजर गीता में’ के माध्यम से इस ज्ञान को उजागर किया है।
उनका कहना है कि अब कलियुग का मध्य काल चल रहा है, जो भक्ति के लिए सबसे उत्तम समय है। इस समय जो व्यक्ति सच्चे गुरु से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करेगा, वह मोक्ष प्राप्त कर सतलोक जा सकता है। वह लोगों से आग्रह करते हैं कि वे इस अवसर को हाथ से न जाने दें, क्योंकि एक बार यह समय निकल गया, तो पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
उनका अंतिम संदेश यही है कि मनुष्य को सत्य भक्ति करनी चाहिए, क्योंकि यही एकमात्र मार्ग है जो उसे जीवन के दुखों से मुक्त कर सकता है।
