
क्या ध्यान और व्रत करने से शांति मिलेगी?
प्रश्न: मैं गीता अध्याय 6 के श्लोक 10 से 15 में बताई गई विधि के अनुसार, एक आसन पर बैठकर ध्यान करता हूँ और एकादशी का व्रत भी रखता हूँ। क्या इससे मुझे शांति मिलेगी?
उत्तर: कृपया आप गीता के अगले श्लोकों पर भी ध्यान दें।
- गीता अध्याय 6, श्लोक 16 में लिखा है कि हे अर्जुन, यह साधना न तो अधिक खाने वाले का, न बिल्कुल न खाने वाले (व्रत रखने वाले) का सिद्ध होता है। यह न तो अधिक जागने वाले का और न ही अधिक सोने वाले का सिद्ध होता है। यह एक स्थान पर बैठकर करने वाली साधना भी नहीं है।
- गीता अध्याय 3, श्लोक 5 से 9 में कहा गया है कि जो मूर्ख व्यक्ति सभी कर्म इंद्रियों को हठपूर्वक रोककर एक ही जगह बैठकर चिंतन करता है, वह पाखंडी कहलाता है। इसलिए कर्मयोगी (यानी काम करते हुए साधना करने वाला साधक) ही श्रेष्ठ है।
गीता के अनुसार वास्तविक भक्ति विधि
गीता का ज्ञान देने वाले प्रभु (ब्रह्म) स्वयं कहते हैं कि पूर्ण मोक्ष और परम शांति के लिए किसी तत्वदर्शी संत की तलाश करनी चाहिए।
- गीता अध्याय 4, श्लोक 34 में यह स्पष्ट है कि वास्तविक भक्ति विधि जानने के लिए किसी तत्वदर्शी संत की शरण में जाना चाहिए। यह साबित करता है कि गीता ज्ञान देने वाले ब्रह्म द्वारा बताई गई विधि पूर्ण नहीं है।
- गीता अध्याय 6, श्लोक 10-15 में ब्रह्म (क्षर पुरुष-काल) ने अपनी साधना का वर्णन किया है। इस साधना से मिलने वाली शांति को उन्होंने स्वयं गीता अध्याय 7, श्लोक 18 में “अति घटिया” (अनुत्तमाम्) बताया है।
- गीता अध्याय 6, श्लोक 47 में, भगवान स्वयं कहते हैं कि उनका अपना बताया गया मार्ग अज्ञान से भरा है। इसका वास्तविक अनुवाद यह है: “मेरे द्वारा दिए गए भक्ति के विचार, जो अटकल से बताए गए हैं, उनमें पूर्ण ज्ञान नहीं है। सभी साधकों में जो श्रद्धा के साथ मेरे बताए भक्ति मार्ग पर चलता है, वह भी अज्ञानता के अंधेरे से भरे जन्म-मरण और स्वर्ग-नर्क के चक्र में ही लीन है।”
- गीता अध्याय 18, श्लोक 62 और अध्याय 15, श्लोक 4 में कहा गया है कि हे अर्जुन, तू परम शांति और सतलोक को प्राप्त होगा और फिर तुम्हारा पुनर्जन्म नहीं होगा, यानी पूर्ण मोक्ष मिल जाएगा। गीता ज्ञान देने वाले प्रभु कहते हैं कि वे भी उसी आदि पुरुष परमेश्वर की शरण में हैं, इसलिए दृढ़ निश्चय करके उसी की साधना और पूजा करनी चाहिए।
- गीता अध्याय 15, श्लोक 4 में यह भी कहा गया है कि जब तुम्हें गीता अध्याय 4, श्लोक 34 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाए, उसके बाद उस परमपद परमेश्वर को खोजना चाहिए। वहां जाने के बाद साधक फिर लौटकर इस संसार में नहीं आते, यानी जन्म-मृत्यु से हमेशा के लिए मुक्त हो जाते हैं।
कर्मयोग और हठयोग
गीता अध्याय 3, श्लोक 5 से 9 में हठयोग (एक स्थान पर बैठकर साधना) को गलत बताया गया है। अर्जुन ने पूछा कि मन को रोकना बहुत मुश्किल है, तो भगवान ने उत्तर दिया कि मन को रोकना हवा को रोकने जैसा है।
- उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिए भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। जो मूर्ख व्यक्ति जबरदस्ती कर्म इंद्रियों को रोककर बैठा रहता है, वह पाखंडी कहलाता है।
- इसलिए कर्म करते हुए साधना करना (कर्मयोग) ही श्रेष्ठ है।
- हठयोग से एक जगह बैठकर साधना करने से जीवन-यापन कैसे होगा? शास्त्र विधि को छोड़कर साधना करना कर्म-बंधन का कारण है।
- गीता अध्याय 8, श्लोक 7 में कहा गया है, “युद्ध भी कर और मेरा स्मरण भी कर। इस प्रकार तू मुझे ही प्राप्त होगा।”
- लेकिन साथ ही, गीता अध्याय 7, श्लोक 18 और अध्याय 18, श्लोक 62 में कहा है कि मेरी साधना से मिलने वाला लाभ अति घटिया है। इसलिए उस परमेश्वर की शरण में जाओ, जिसकी कृपा से तुम्हें परम शांति और सनातन परम धाम यानी सतलोक मिलेगा। उस परमेश्वर की भक्ति विधि और पूर्ण ज्ञान (तत्वज्ञान) किसी तत्वदर्शी संत की खोज करके ही पूछो, क्योंकि मैं (गीता ज्ञान देने वाला ब्रह्म) भी नहीं जानता।
