
कबीर साहिब का श्री हनुमान जी को शरण में लेना
सीता की खोज और कंगन का रहस्य
त्रेता युग में जब रावण सीता जी का हरण करके लंका ले गया तो उनकी खोज में श्री हनुमान जी निकले। अंततः सीता जी मिल गईं। उन्होंने हनुमान को अपने राम जी तक पहुँचाने के लिए एक कंगन दिया।
लौटते समय हनुमान जी स्नान करने के लिए एक निर्मल जल के सरोवर पर रुके और कंगन पास ही पत्थर पर रख दिया। तभी एक बंदर आया और वह कंगन उठाकर पास ही एक आश्रम में भाग गया। आश्रम में रखे एक बड़े मटके में उसने वह कंगन डाल दिया।
जब हनुमान जी ने मटके में झाँका तो देखा – वही कंगन उसमें पहले से भरे पड़े हैं, सब एक जैसे। असमंजस में पड़े हनुमान जी पास बैठे एक महात्मा के चरणों में गए और पूरी बात बताई। वह महात्मा और कोई नहीं, स्वयं कबीर साहिब थे, जो वहाँ मुनिन्द्र ऋषि रूप में विराजमान थे।
मुनिन्द्र ऋषि (कबीर साहिब) का ज्ञान
हनुमान जी ने व्याकुल होकर कहा – “माता सीता का दिया हुआ कंगन इनमें से कौन-सा है, मैं पहचान नहीं पा रहा।”
तब मुनिन्द्र कबीर साहिब ने कहा –
“पुत्र! पहचान हो भी नहीं सकती। यदि तुम्हें पहचान होती तो तुम इस कालजाल में दुखी क्यों होते? यह सब इस क्षर पुरुष ब्रह्म (काल) की लीला है। राम और सीता भी जन्म-मरण के चक्र में हैं। दशरथ पुत्र रामचन्द्र जैसे 30 करोड़ राम हो चुके हैं और ऐसे ही अनगिनत हनुमान भी हो चुके हैं। यह सब काल की बनाई फिल्म के पात्र हैं।”
हनुमान जी चकित रह गए। कबीर साहिब ने कहा –
“यह मटका उसी का प्रमाण है। इसमें जितनी वस्तु डाली जाती है, उसकी हूबहू प्रतिकृति बन जाती है। उसी तरह हर युग में नए-नए पात्र आते रहते हैं। तुम्हें अपने राम और सीता भी काल के जाल में बंधे हुए ही दिखेंगे। अगर मुक्ति चाहते हो तो सच्चे परमात्मा की भक्ति करो।”
सतलोक का दिव्य दर्शन
हनुमान जी को यह बातें अजीब लगीं और उन्होंने जाने की जल्दी जताई। बाद में जब वे पहाड़ पर भजन कर रहे थे, कबीर साहिब पुनः उनके पास मुनिन्द्र ऋषि रूप में आए।
हनुमान जी को पहचान याद आई। कबीर साहिब ने कहा –
“तुम्हारी साधना अपूर्ण है। यह तुम्हें मोक्ष नहीं दिलाएगी। आओ, मैं तुम्हें असली सत्य दिखाता हूँ।”
फिर कबीर साहिब ने हनुमान जी को दिव्य दृष्टि दी। पृथ्वी पर बैठे हनुमान जी को ही सतलोक का अद्भुत दृश्य दिखाया। वहाँ की दिव्यता और प्रकाश देखकर हनुमान जी स्तब्ध रह गए। उन्होंने तीन लोक के स्वामी ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा काल निरंजन को भी देखा, जो सब जन्म-मरण में फंसे हुए हैं।
हनुमान जी का शरणागति स्वीकारना
सतलोक के दर्शन कर हनुमान जी ने कबीर साहिब के चरण पकड़ लिए और बोले –
“प्रभु, क्षमा करें। मुझसे पहले अभद्र व्यवहार भी हुआ। अब मुझे शरण दीजिए।”
तब कबीर साहिब ने हनुमान जी को पहले नाम, फिर सत्यनाम प्रदान किया और उन्हें मोक्ष का अधिकारी बनाया।
प्रमाण
इस अद्भुत घटना का प्रमाण कबीर सागर – हनुमान बोध में मिलता है।
यह कथा स्पष्ट करती है कि त्रेता युग में भी कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा थे और उन्होंने अपने भक्त हनुमान जी को भी शरण में लिया।
निष्कर्ष
हनुमान जी जैसे महाबली भक्त भी केवल भगवान राम की भक्ति से मुक्ति नहीं पा सके। उन्हें पूर्ण ब्रह्म कबीर साहिब की शरण में आकर ही सत्यज्ञान और मोक्ष प्राप्त हुआ।
संत रामपाल जी महाराज ने आज उसी सत्यज्ञान को पुनः प्रकट किया है।
इसलिए, यदि हम मुक्ति चाहते हैं तो हमें भी कबीर साहिब की शरण लेनी होगी।
