इस्लाम में अल्लाह साकार है उसका नाम कबीर हैं ।


इस्लाम में अल्लाह साकार है और उसका नाम कबीर है

इस्लाम में, अल्लाह को साकार माना जाता है और उसका नाम कबीर है।

कुरान शरीफ और अन्य पवित्र पुस्तकों, जैसे तोरेत, जबूर और इंजील के अनुसार, अल्लाह का स्वरूप मानव जैसा है। तोरेत के ‘पैदाइश’ 1:26-27 में कहा गया है कि “खुदा ने कहा, हम इंसानों को अपनी सूरत के अनुसार बनाएं… तब खुदा ने इंसानों को अपनी सूरत के अनुसार पैदा किया, नर और नारी करके।” इससे साबित होता है कि अल्लाह साकार है, क्योंकि उसने हमें अपनी सूरत के जैसा बनाया है।

आजान में “अल्लाह हू अकबर” का उच्चारण होता है। अरबी में ‘अकबर’ का अर्थ ‘बड़ा’ होता है, जबकि ‘कबीर’ का अर्थ भी ‘बड़ा’ होता है। ये दोनों नाम एक ही हैं, और ‘अकबर’ को ‘कबीर’ का बिगड़ा हुआ रूप माना जाता है।

कुरान शरीफ के सूरत फुरकान 25 आयत 59 में लिखा है कि जिसने आसमान और धरती के बीच सब कुछ छह दिन में पैदा किया, वह अल्लाह कबीर है। इसलिए, “अल्लाह हू अकबर” की जगह “अल्लाह हू कबीर” बोलना सही है।

  • गलत अर्थ: अल्लाह बड़ा है।
  • सही अर्थ: अल्लाह कबीर है।

नोट: जिस तरह वेदों में ‘कविर’ का अर्थ संस्कृत विद्वानों ने ‘सर्वज्ञ’ किया है, उसी तरह मुस्लिम भाइयों ने ‘कबीर’ का अर्थ ‘बड़ा’ किया है, जो गलत है। किसी भी भाषा में नाम का अनुवाद नहीं होता, उसे ज्यों का त्यों लिखा जाता है।

उदाहरण के लिए, अगर हम कहें “Honey eats the food” (हनी खाना खाता है), तो ‘Honey’ का अर्थ ‘शहद’ नहीं होता, क्योंकि यह एक नाम है और इसका अनुवाद नहीं किया जाता।

मानव शरीर को पाने के लिए देवता भी तरसते हैं

मानव शरीर में ही आत्मा को मोक्ष मिल सकता है। शरीर में कमल (चक्र) होते हैं, जिनका ज्ञान योगियों को होता है। ये सात चक्र इस प्रकार हैं:

  1. मूल कमल (चक्र): यह रीढ़ की हड्डी के अंत में, गुदा के पास होता है और इसमें गणेश जी का वास होता है। इसमें चार पंखुड़ियाँ होती हैं।
  2. स्वाद कमल: यह रीढ़ की हड्डी में गुप्त इंद्री के पास होता है। इसमें ब्रह्मा और सावित्री का वास होता है और इसमें छह पंखुड़ियाँ होती हैं।
  3. नाभि कमल: यह नाभि के पास पीछे रीढ़ की हड्डी में होता है। इसमें विष्णु और लक्ष्मी जी का वास होता है और इसमें आठ पंखुड़ियाँ होती हैं।
  4. हृदय कमल: यह हृदय में पीछे रीढ़ की हड्डी में होता है। इसमें शिव और पार्वती का वास होता है और इसमें बारह पंखुड़ियाँ होती हैं।
  5. कंठ कमल: यह कंठ में पीछे रीढ़ की हड्डी में होता है। इसमें दुर्गा देवी का वास होता है और इसमें सोलह पंखुड़ियाँ होती हैं।
  6. त्रिकुटी कमल: यह दो पंखुड़ियों का कमल होता है। यह सिर के पीछे होता है।
  7. सहस्रार कमल: यह हजार पंखुड़ियों का होता है और इसमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव के पिता काल निरंजन ब्रह्म का वास होता है। यह वह स्थान है जहाँ ब्राह्मण चोटी रखते हैं।

इसके अलावा, आठवां और नौवां कमल भी होते हैं, लेकिन वे इस शरीर में मौजूद नहीं हैं। इस शरीर में केवल एक ब्रह्मांड का नक्शा बना हुआ है। आठवां और नौवां कमल काल के 21 ब्रह्मांडों को पार करने के बाद आते हैं।

इन योगियों को केवल सात कमल और दस द्वारों का ज्ञान होता है। दसवें द्वार को सुषुम्ना द्वार भी कहते हैं। यह द्वार नाक के दोनों छिद्रों के बीच में ऊपर की तरफ खुलता है और मंत्रों के जाप से खुलता है। यह सुई की नोक जितना होता है। दसवें द्वार में आगे चलकर त्रिकुटी आती है।

इनकी समाधि केवल त्रिकुटी तक ही जा सकती है। जब इनका शरीर छूटता है, तो वे त्रिकुटी पर जाते हैं। त्रिकुटी पर तीन रास्ते होते हैं। मोक्ष का रास्ता सामने वाला होता है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। इन साधुओं, पंडितों और ऋषियों के पास वह सतनाम का मंत्र नहीं होता, जो उस ब्रह्मरंध्र को खोलकर ग्यारहवें द्वार में प्रवेश करवाता है।

इसलिए, वे सामने वाले ब्रह्मरंध्र को नहीं खोल पाते और अपनी भक्ति के कारण दाएं और बाएं चले जाते हैं, जिस इष्ट की उन्होंने साधना की है। वे अपने पुण्यों को खर्च करके, फिर अपने पापों को भोगने के लिए नरक और चौरासी लाख योनियों में जाते हैं। फिर कभी मानव जीवन मिलता है, तो भक्ति करते हैं, वरना नरक में जाते हैं, जैसा कि देवी पुराण में लिखा है।

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